गुरुवार, 22 जून 2017

ठक्-प्रत्यय

=========================
 
हम आपको समय-समय पर प्रत्ययों का विस्तृत विश्लेषण बताते रहते हैं । इस क्रम में हमने आपको अब तक नौ प्रत्ययों का विस्तृत विश्लेषण बता दिया है । आज हम मुख्य रूप से तद्धित-प्रत्यय ठक् के बारे में बताने वाले हैं । आशा है कि इससे आपको बहुत लाभ होगा ।
 
पाणिनीय-तन्त्र में प्रत्ययों का प्रयोग दो प्रकार से होता है । प्रथम तो धातु से प्रत्यय जोडे जाते हैं, दूसरे शब्दों से प्रत्यय जोडकर नए शब्दों का निर्माण किया जाता है ।
 

हम आज दूसरे प्रकार के प्रत्यय के बारे में सिखेंगे । ये हैं तद्धित प्रत्यय । तद्धित प्रत्यय धातुओं से न होकर शब्दों से होते हैं ।
 
शब्द दो प्रकार के होते हैं---((१.) स्त्री-प्रत्ययान्त शब्द , (२.) प्रातिपदिक-शब्द ।।
 
इनमें स्त्री-प्रत्यय कुल सात हैं । जो इस प्रकार हैं---टाप्, डाप्, चाप्, ङीप्, ङीष्, ङीन् और ति ।
 
प्रातिपदिक चार प्रकार के होते हैंः----(१.) अर्थवान् अव्युत्पन्न-शब्द, जैसे---डित्था, कपित्था आदि । (२.) कृत्प्रत्ययान्त शब्द, जैसे---कर्त्ता, कारकः, कार्यम् आदि । (३.) तद्धित-प्रत्ययान्त शब्द, जैसे--बलवान्, दैनिकम्, बली, गौरवम् आदि । (४.) समस्त अर्थात् समास-युक्त शब्द, जैसे--राजपुरुषः, महर्षिः, महात्मा पीताम्बरः आदि ।
 
इन चारों प्रकारों के शब्दों का विधान इन दो सूत्रों से होता है---(१.) अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् (२.) कृत्तद्धितसमासाश्च (१.२.४५--४६)
 
इन सात स्त्रीप्रत्ययान्त और चारों प्रकार से प्रातिपदिक शब्दों से तद्धित प्रत्यय किए जाते हैं । सूत्र है---
ङ्याप्प्रातिपदिकात्---४.१.१ और तद्धिताः---४.१.७६
 
तद्धित-प्रत्यय भी सैकडों हैं । उनमें से आज केवल ठक् प्रत्यय का विश्लेषण आपके सामने प्रस्तुत है ।
 
ठक् प्रत्यय इस सूत्र से प्रारम्भ होता है---"प्राग्वहतेष्ठक्--४.४.१
 
यह अधिकार सूत्र है । इसका अधिकार प्राग्घिताद् यत् ४.४.७५ तक जाता है । इसका अभिप्राय यह हुआ कि लगभग ७४ सूत्रों से ठक् प्रत्यय का विधान है । इनमें जिनका विशेष विधान होगा, उसको छोड दिया जाएगा ।
 
ठक्-प्रत्यय का विश्लेषण
====================
 
(१.) ठक् प्रत्यय का क् हट जाएगा---हलन्त्यम्--१.३.३ सूत्र से । अतः यह कित् माना जाएगा । कित् का मतलब है कि जिसका क् हट गया हो, वह कित् माना जाएगा ।
 
(२.) अब ठ को इक् आदेश हो जाएगा । अर्थात् ठ को हटाकर उसके स्थान पर इक् आ जाएगा । ठस्येकः--सूत्र ७.३.५० सूत्र से ।
 
(३.) ठक् प्रत्यय शब्दों से होता है, किन्तु इससे बने शब्द विशेषण होते हैं ।
 
(४.) विशेषण में लिङ्ग, वचन, विभक्ति आदि विशेष्य के अनुसार ही होगा । अतः इस प्रत्यय में कुछ भी निर्धारित नहीं है ।
 
(५.) ठक् के कित् होने के कारण इसके आदि अच् को वृद्धि होगी---किति च---सूत्र से--७.२.११८
 
इसका अभिप्राय यह है कि शब्द का जो प्रथम अच् अर्थात् स्वर होगा, उसके स्थान पर उसका दीर्घ रूप आ जाएगा , अर्थात् वृद्धि जो जाएगी ।
 
जैसे---(क) यदि शब्द का आदि अच् अ या आ हो तो उसे आ हो जाएगा । जैसे---धर्म+इक= धार्मिकम्
मास+इक=मासिकम्
 
(ख) यदि शब्द का आदि अच् इ, ई या ए हो तो उसे ऐ हो जाएगा । जैसे-- दिन+इक= दैनिकम्
नीति+इक=नैतिकम्
 
वेद+इक= वैदिकम् इसी प्रकार दैविकम् ।
 
(ग) यदि शब्द का आदि अच् उ,ऊ या ओ हो तो उसे औ हो जाएगा ।
जैसे---
उद्योग+इक= औद्योगिकम्
भूगोल+इक =भौगोलिकम्
लोक+इक =लौकिकम्
 
(घ) यदि शब्द का आदि अच् ऋ हो तो उसे अर् हो जाएगा । जैसे---कृत+इक= कार्तिक और वृष+इक =वार्षिक
 
(ङ) अन्य प्रयोगः---
अक्षों से खेलने वाला--आक्षिकः
दधि से संस्कृत किया गया---दाधिकम् बनेगा ।
 
(६.) जिस प्रकार ठक् प्रत्यय होता है, उसी प्रकार ठञ् प्रत्यय भी होगा और उसके स्थान पर भी ठस्येकः ७.३.५० से इक हो जाएगा ।
 
ठञ् प्रत्यय ञित हैं , अतः इसके आदि अच् को वृद्धि तद्धितेष्वचामादेः--७.२.११७ सूत्र से होगी ।
बस दोनों में यही अन्तर है । इसके कित् या ञित करने का लाभ स्वर में है ।
 
ठञ् प्रत्यय का सूत्र है---गोपुच्छाट् ठञ्---४.४.६
 
जो व्यक्ति नदी या तालाब में गो के पुच्छ को पकडकर तैरे, उसे गौपुच्छिकः कहेंगे--गोपुच्छेन तरति इति ।
 
(७.) इसी प्रकार एक प्रत्यय और है--ठन् । इसका विधान इस सूत्र से होगा---नौद्वयचष्ठन्--४.४.७
 
इसके नित् होने से इसमें वृद्धि नहीं होगी । यहाँ भी ठक् को इक आदेश होगा । उदा.
नौ+इक नाविकः (नावा तरतीति)
 
यहाँ विशेष यह है कि औ आदि अच् को आव् आदेश हो जाएगा ।
 
यह यण् सन्धि का उदाहरण है ।
इसी प्रकार घटेन तरति इति घटिकः बनेगा ।
 
(८.) जो शकट (गाडी) से चले, यात्रा करे या घूमे उसे शाकटिकः कहेंगे । हस्तिना चलति इति हास्तिकः ।
 
(९.) जो व्यक्ति वेतन से जीवित रहता हो, उसे वैतनिकः कर्मकरः कहेंगे ।
 
अभ्यास के लिए कुछ उदाहरणः---
 
मनुष्यः सामाजिकः प्राणी अस्ति ।
पर्यावरणस्य रक्षणम् अस्माकं नैतिकं कर्त्तव्यम् ।
अद्यत्वे औद्योगिकः विकासः सर्वत्र दरीदृश्यते ।
विद्यया लौकिकी अलौकिकी च उन्नतिः भवति ।
मम गृहे माङ्गलिकं यज्ञं भवति ।
 
विद्यालये धार्मिकः उत्सवः भवति ।
अयं वैदिकः विद्वान् अस्ति ।
सः पौराणिकः मङ्गलाचरणं करोति ।
दिल्ल्याम् अनेकानि ऐतिहासिकानि स्थानानि सन्ति ।
भारतस्य भौगोलिकी स्थितिः विचित्रा अस्ति ।
 
सम्प्रति देशस्य आर्थिकी स्थितिः सन्तोषप्रदा ।
साप्ताहिकः अवकाशः रविवासरे भवति ।
अयं काल्पनिकः उपन्यासः केन लिखितः ।
मम पुस्तकालये अनेकाः साहित्यिकाः पत्रिकाः आयान्ति ।
 
औद्योगिकेन विकासेन पर्यावरणं प्रदूष्यते ।
वार्षिकायां परीक्षायां मया "पर्यावरणम्" विषयम् अवलम्ब्य निबन्धः लिखितः ।
 
दैनिकं कार्यं मया सम्पन्नम् ।
===============================

   वेबसाइट---
www.vaidiksanskritk.com
www.shishusanskritam.com
वैदिक साहित्य की जानकारी प्राप्त करें---
www.facebook.com/vaidiksanskrit
www.facebook.com/shabdanu
संस्कृत नौकरियों के लिए---

www.facebook.com/sanskritnaukari
आयुर्वेद और हमारा जीवनः--
www.facebook.com/aayurvedjeevan
चाणक्य-नीति पढें---
www.facebook.com/chaanakyaneeti
लौकिक साहित्य पढें---
www.facebook.com/laukiksanskrit
आर्ष-साहित्य और आर्य विचारधारा के लिए
www.facebook.com/aarshdrishti
सामान्य ज्ञान प्राप्त करें---
www.facebook.com/jnanodaya
संस्कृत सीखें---
www.facebook.com/shishusanskritam
संस्कृत निबन्ध पढें----
www.facebook.com/girvanvani
संस्कृत काव्य का रसास्वादन करें---
www.facebook.com/kavyanzali
संस्कृत सूक्ति पढें---
www.facebook.com/suktisudha
संस्कृत की कहानियाँ पढें---
www.facebook.com/kathamanzari
संस्कृत में मनोरंजन--
www.facebook.com/patakshepa

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें